मुझको इंसान बनाया किसने ?



कुछ कहते थे बिल्कुल “मैं आसान नहीं..”
फिर मुझको आसान बनाया किसने ?

बादल के उन छोटे-छोटे टुकड़ों को
सी-सी कर आसमान बनाया किसने ?

धूल जमीं अतीत के पन्नों को सब भूले
उस भूले-बिसरे को पहचान बनाया किसने ?

हर रोज गरीबी में मर कर जो जीते थे
उनकों हर दुःख से अनजान बनाया किसने ?

कुछ लोगों ने ठोकर मारी ‘पत्थर’ कहकर
फिर उस पत्थर को भगवान बनाया किसने ?

मैंने देखा है बनते माटी के देवों को
फिर मुझको इंसान बनाया किसने ?


- कवि कुमार अशोक 

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