Kavi Kumar Ashok is a young Indian poet and writer. This Blog is dedicated to him and his Literary work. He is Honored with "Vishwas Trophy Award in 2005.
नटखट उम्र-औ-जान
नारी की लाज
आज क्यों है मौन सा ?
माँग से है जो मिटा
रंग था वो कौन सा ?
वो प्रीत था या प्राण था
वो वज्र था या बाण था ?
उसका भी रंग लाल था
वो अबीर या गुलाल था ?
आज तू मुझे बता
ये चीर क्यों सफ़ेद है ?
क्या छुपा रही है मुझसे
कौन सा वो भेद है ?
मेंहदी का रंग क्यों छुटा
ये नौलखा है क्यों टुटा ,
क्यों पैंजनी बेजान है
क्यों घर बना शमशान है ?
थी खनकती चूड़ीयाँ
वो आज क्यों खामोश है ,
सँवरती जिसमे देख कर
वो आईना बेहोश है I
वीरों की पिचकारीयाँ
चला रही थी गोलियाँ ,
छींटा पड़ा जो लाल था
वो अबीर या गुलाल था ?
स्वप्न को सँजोने वाली
आँख तेरी क्यों है नम ,
आग बनी सिसकीयाँ
अश्रु बन गये हैं बम I
वो शहीद हो गया
वक्ष से था जो बहा ,
उसका भी रंग लाल था
वो अबीर या गुलाल था ?
खो दिया है तुने जिसको
देश का वो गर्व है ,
ये होली है शहीद की
शहीद का ये पर्व है I
तिरंगा ऊँचा है खड़ा
धरा पर लतफत पड़ा ,
देश का वो लाल था
क्या अबीर क्या गुलाल था ?
शहीद की होली
आज क्यों है मौन सा ?
माँग से है जो मिटा
रंग था वो कौन सा ?
वो प्रीत था या प्राण था
वो वज्र था या बाण था ?
उसका भी रंग लाल था
वो अबीर या गुलाल था ?
आज तू मुझे बता
ये चीर क्यों सफ़ेद है ?
क्या छुपा रही है मुझसे
कौन सा वो भेद है ?
मेंहदी का रंग क्यों छुटा
ये नौलखा है क्यों टुटा ,
क्यों पैंजनी बेजान है
क्यों घर बना शमशान है ?
थी खनकती चूड़ीयाँ
वो आज क्यों खामोश है ,
सँवरती जिसमे देख कर
वो आईना बेहोश है I
वीरों की पिचकारीयाँ
चला रही थी गोलियाँ ,
छींटा पड़ा जो लाल था
वो अबीर या गुलाल था ?
स्वप्न को सँजोने वाली
आँख तेरी क्यों है नम ,
आग बनी सिसकीयाँ
अश्रु बन गये हैं बम I
वो शहीद हो गया
वक्ष से था जो बहा ,
उसका भी रंग लाल था
वो अबीर या गुलाल था ?
खो दिया है तुने जिसको
देश का वो गर्व है ,
ये होली है शहीद की
शहीद का ये पर्व है I
तिरंगा ऊँचा है खड़ा
धरा पर लतफत पड़ा ,
देश का वो लाल था
क्या अबीर क्या गुलाल था ?
बेईमानी का डिप्लोमा
आज के जमाने में
ईमानदारी का क्या रूप है,
उसका क्या स्वरुप है
ये जानने के लिए सोचा,
तो एक आम आदमी से पूछा
उसने कहा –
ये ईमानदारी है एक लाचारी
आप पर हँसेगी दुनिया सारी
अगर आप ईमानदार हैं
एक तो नौकरी नहीं मिलती
उसपर भी आप ईमानदार
तो सब से बड़ी गलती
आप जहाँ भी जायेंगे
बस गालियाँ ही खायेंगे
मार कर भगा दिए जायेंगे
अगर आप ईमानदार हैं
आप चीखेंगे चिल्लायेंगे
आप की कोई नहीं सुनेगा
ऊपर से चार जूते धुनेगा
अगर आप ईमानदार हैं
आप को कोई नौकरी नहीं देगा
कितना भी सोर्स लगावो
नीचे से पैसा दबावो ,
बड़ी से बड़ी डिग्री लावो
चाहे भूखों मर जावो
नौकरी तब पाओगे
जब ...
बेईमानी का डिप्लोमा दिखाओगे
वरना ढूँढते रह जाओगे
खाली हाथ घर जाओगे
घरवालों से गालियाँ खावोगे
मरने जाओगे
मर भी नहीं पावोगे
और गलती से मर गये...
तो...
ऊपर क्या काला मुँह लेकर जाओगे ?
वहाँ के सुखों को भी नहीं भोग पावोगे
सुंदर अप्सराओं का डी जे
नहीं देख पावोगे
किसी कोने में चुप चाप
खड़े रह जावोगे
आप को प्रवेश नहीं मिलेगा !
क्योंकि उसके लिए भी ..
बेईमानी का टिकट लगेगा ....
- कवि कुमार अशोक