पुच्छल तारा



वह पुच्छल तारा आसमान का टूटा सा,

वह टहनी अपने ही तरुवर से छूटा सा !

वह ओस की बूंदों जैसा पत्तों पर बैठा,

वह जैसे कोई बेल हो पेड़ों में ऐंठा !

वह टूटे नीड़ के तिनके तिनके सा बिखरा,

वह जैसे कोई गीत हो भूला और बिसरा !

वह घुप्प अंधेरों में एक नन्हा जुगनू सा

वह जैसे कोने में रखा एक मंजूषा

वह सहमा-सहमा सा थोडा सा डरा-डरा

वह पतझड़ के पीले पत्तों सा झरा-झरा

वह अपना होकर भी अपनों से छँटा-छँटा

वह अपना हो कर भी अपनों में बँटा-बँटा


- कवि कुमार अशोक 



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