नटखट उम्र-औ-जान



इनसे तो अपना रिश्ता
पुराना है
हमने इनको जाना है
पहचाना है
ये बेखबर ही सही
पर हमने इनको
दिल से माना है
न जाने कितने अरसों से
बक बक कर रहें हैं
न रुक रहे हैं
न थक रहें हैं
किसी का शिकवा
तो किसी का
हाल-ए-दिल
फार्म रहें हैं
छोटे बड़े सपनों को समेटे
बस चलते जा रहें हैं
इनकी चपर चपर कानों में
बजते हैं
इनके लतीफे सर पर
बड़े जोर से लगते हैं
चोट लगती है दिल पर
फिर भी इनसे
दिल लगाता हूँ
सिर्फ इनकी एक मुस्कराहट पर
इनकी सारी
गुस्ताखियाँ भूल जाता हूँ
जिंदगी का हर नगमा
हर नज्म
अपने आँचल में समेटे
जब किसी कोने से पुकारते हैं
तो ...
जिंदगी अंधेरों में भी साफ़
नज़र आती है
ये बेखौफ़ चलते हैं
हमारी धड़कनें ठहर जातीं हैं
प्यार इस कदर है इनसे  
कि ..
ये दूर हों हमसे
तो..
जिंदगी कम हो जाती है
और करीब आयें तो
आँखें नम हो जातीं हैं
ये नटखट उम्र-औ-जान
और जिंदगी बेहिसाब बाकी है ..


- कवि कुमार अशोक 





No comments:

Post a Comment