किताबों में अक्सर तुम मिलती हो मुझसे
कभी घर भी मेरे तुम आना प्रिये
वो सावन का झूला वो बारिश की बूँदें
मेरा दिल भी तुम साथ लाना प्रिये
शयन कक्ष में तुम न जाना प्रिये
वहाँ तुमको टूटा दर्पण मिलेगा
संभलकर के रखना कदम धीरे-धीरे
अन्यथा रक्त मेरे ह्रदय से बहेगा
यदि आना हो मन के इस आंगन में तुमको
तो मेरी कल्पना बनकर आना प्रिये
कागज़ के पन्नों पर दिल की कलम से
मेरी प्रेरणा बनकर छाना प्रिये
जो छिपाकर रखे थे किताबों में मैंने
उन गुलाबों को फिर से महकाना प्रिये
तेरा रूठ जाना तुम्हें फिर मनाना
जरा फिर वो किस्सा सुनना प्रिये
- कवि कुमार अशोक
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